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Showing posts from January, 2015

इस पर ज़रा ध्यान दीजिये ..!

In some ways, you know, people that don't exist, are much nicer than people that do. Lewis Carroll (1832-1898) Post by Amma .

Fw: Inside of Pyramid

- -         Inside of the Pyramid in Egypt   http://www.frogview.com/uploadimages2/482172621c2a67.71495569frogview-gallery.jpg   http://www.frogview.com/uploadimages2/48217263ee0971.00542847frogview-gallery.jpg   http://www.frogview.com/uploadimages2/4821726403cdd2.26973569frogview-gallery.jpg   http://www.frogview.com/uploadimages2/48217264129a20.10993363frogview-gallery.jpg   http://www.frogview.com/uploadimages2/482172641c2465.95122199frogview-gallery.jpg   http://www.frogview.com/uploadimages2/4821726425e8f9.81745061frogview-gallery.jpg   http://www.frogview.com/uploadimages2/482172642f44f2.58692302frogview-gallery.jpg   http://www.frogview.com/uploadimages2/482172643ab308.55156099frogview-gallery.jpg       "

Southern Sacred Walks

About Southern Sacred Walks..

Electro Masaladosa..!

The Echo of life..

Atithi devo bhavah ...!

http://kurup-man.podomatic.com/entry/2015-01-24T03_56_20-08_00 श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। सवधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।। अछी प्रकार आचरण में लाये हुए 'दूसरोंके' धर्म से " गुणरहित " भी "अपना " धर्म अत्युत्तम हैं और दुसरे का धर्म भय को  देनेवाले हैं।  अपने धर्म में मरना कल्याण कारक हैं। श्रीमद भगवत गीता :- ३/३५ श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मान्स्वनुष्ठितात्। स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।। श्रीमद भगवत गीता :- १८/४६ अछि तरह आचरण में लाये हुए दुसरे केधर्म से गुणरहित ही अपना धर्मश्रेष्ठ हैं। क्योंकि " स्वभाव ' से नियत किये हुए स्वधर्मरूप कर्म को करता मनुष्य पापको प्राप्त नहीं होता।  Why Was Kashi Created?

The Man Who Built a Road through a Mountain...

http://www.pinterest.com/pin/355573333055399479/ Click here to know more.... The Man Who Built a Road through a Mountain ...! Read more...   Obama to join Modi on Mann ki bat.. Read more...

सत्व के द्वारा रज और तम -इन दो दुणों पर विजय प्राप्त कर लेनी चाहिए..1

 सत्त्वं रजस्तम इति गुणा बुद्धेर्न चात्मनः। सत्त्वेनान्यतमो हन्यात् सत्त्वं सत्त्वेन चैव हि।। सत्त्वाद धर्मो भवेद् वृद्धत्त् पुंसो मद्भक्तिलक्षणः। सात्त्विकोपासया सत्त्वं ततो धर्मः प्रवर्तते।। धर्मो रजस्तमो हन्यात् सत्त्ववृद्धिनुत्तमः। आशु नश्यति तन्मूलो ह्यधर्म उभये हते।। आगमो/पः  प्रजा देशः कालः कर्मा च जन्म च। ध्यानं मंत्रोअथ संस्कारो दशैते गुणहेतवः।। तत्तत् सात्त्विकमेवैषां  यद यद वृद्धा प्रचक्षते। निन्दन्ति तामसं तत्तद राजसं  तदुपेक्षितम्।। सात्त्विकान्येव सेवेत पुमान् सत्त्वविवृद्धये।। ततो धर्मस्ततो ज्ञान यावत् स्मृतिरपोहनम्। वेणुसंघर्षजो वह्निर्दग्ध्वा शाम्यति तद्वनम्।। एवं गुणव्यत्ययजो देहः शाम्यति तत्क्रियः।। श्रीमद् भागवतं -११ / भगवान श्रीकृष्ण ने कहा :- प्रिय उद्धव :- सत्व ,रज ,तम - ये तीनों बुद्धि के गुण  हैं , आत्मा के नहीं। सत्व के द्वारा रज और तम -इन दो  दुणों पर विजय प्राप्त कर लेनी चाहिए। तदनन्तर सत्वगुण की शांत वृत्ति के द्वारा उसकी दया आदि वृत्तियों को भी शांत कर देना चाहिए।  जब सत्त्वगुण के वृद्धि होती हैं , तभी जीव को मेरे भक्तिरूप स्वधर्म की प्राप्ति

The Hungy Fox..!

The Hungry fox ..! Click here to know more....! Manoj Kurup Ramadas > Pasteboard...Click here to know What I paste...!

पैर के अंगूठे द्वारा भी शक्तिका संचार होता हैं।

Post by MY GOD.com . पैर के अंगूठे द्वारा भी शक्तिका संचार होता हैं।   पाँव के अंगूठे में विद्युत सम्प्रेक्षणीय शक्ति होती हैं , यही कारण हैं कि,  अपने वृद्धजनोंके नम्रतापूर्वक चरणस्पर्श करने से जो आशीर्वाद मिलता हैं , उससे व्यक्ति की उन्नति के रस्ते खुलते जाते हैं।  कहते हैं गौदान -गंगादि तीर्थस्नान के पुण्यफल केवल गुरुजनोंके पांवप्रक्षालन एवं चरण वंदन से प्राप्त होता है।  वृद्धजनोंके चरणस्पर्श के पश्चात शरीर में व्यापृत इस शक्ति का संचार एवं विद्युत सम्प्रेक्षणीय शक्ति से अविद्या रुपी अन्धकार नष्ट होता हैं और व्यक्ति उन्नति करता हैं।

Many fine things can be done in a day if you don't always make that day tomorrow....!

http://kurup-man.podomatic.com/entry/2015-01-19T00_26_02-08_00#.VLzEEg9Qvpk.google

ഇതും ഒരു കഥ ...!

चतुर सखीं  लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल सुहाई सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराई न जाई। ചതുർ  സഖീം ലഘി കഹാ  ബുഝായി പഹിരാവഹു ജയ്മാൽ സുഹായി സുനത് ജുഗല് കർ  മാല്  ഉഠായി പ്രേം ബിബാസ് പഹിരായി ന ജായി . ത്രയംബകം വില്ലോടിഞ്ഞു . സീതാ ദേവി ശ്രീരാമ സവിധം ആനയിക്കപ്പെട്ടു . ക്ഷത്രിയ സിംഹങ്ങളുടെ  കഴുത്ത് മാതാ  -പിതാക്കളുടെയും ഗുരുജനങ്ങളുടെയും മുന്നിലലാതെ മറ്റാരുടെയും സമക്ഷം താഴില്ലല്ലോ ..? ബാല മൃഗരാജ സമാനനായ  ശ്രീ രാമന്റെ  ഉയർന്ന ശിരസ്സിൽ വരമാലയണിയിക്കുവാനാകാതെ ഇതികർത്തവ്യമൂഢയായി നിന്നു . പിന്നെയാ  കാതര നയനങ്ങൾ  കൊണ്ട് ലക്ഷ്മണനെ ഒന്നുഴിഞ്ഞു . നിമിഷങ്ങള കൊണ്ട് ലക്ഷ്മണൻ കാര്യം ഗ്രഹിച്ചെടുത്തു . പിന്നെയോട്ടും വൈകിയില്ല . ലക്ഷ്മണൻ സോദര ചരണങ്ങളിലേക്ക്  സാഷ്ടാംഗം വീണു . പ്രിയ സോദരനെ പിടിച്ചുയർത്താനായി  അദ്ദേഹം കുനിഞ്ഞ ലാക്കിന് സീതാദേവി അദ്ദേഹത്തിന്റെ കഴുത്തിൽ വരണമാല്യമണിയിച്ചു. മനോജ്‌ കുറുപ്പ്    

हठ ही सीताजी का कष्ट बने.

एक बार महाराज जनक की पुत्री सीता अपनी सखियों के साथ उद्यान में खेल  रही थी , वहां उन्हें नर और मादा तोते का जोड़ा बैठा दिखाई  दिया।  वे दोनों एक वृक्ष की डाल पर बैठे -बैठे एक बड़ी मनोहर कथा कह रहे थे।  कथा कुछ इस तरह थी। । इस पृथ्वी पर श्रीराम नाम से प्रसिद्ध एक बड़ा राजा होंगे।  उनकी महारानी का नाम सीता होगा।  श्रीराम बड़े बलवान और बुद्धिमान होंगे और वे समस्त राजाओंको अपने अधीन कर सीताजी के साथ ग्यारह हज़ार वर्षों तक राज करेंगे।  तोते के मुखसे ऐसी बातें सुनकर सीता ने सोचा कि कहीं ये दोनों मेरे ही जीवन कथा तो नहीं कह रहे हैं? इन्हे पकड़कर क्यों न सभी बातें  पूछूँ ? ऍसा  सोच कर उन्होंने अपने सेवकोंसे कहकर दोनों पक्षियोंको चुपके से पकड़वालिया।  सीता ने उन दोनोंसे कहा कि  तुम दोनों डरो मत , मैं सिर्फ यह जानना चाहती हूँ कि  तुम दोनों कौन हो? कहाँ से आये हो ? राम कौन हैं ?सीता कौन हैं ? तुम्हे यह जानकारी कैसे मिली ? इतने सारे प्रश्न सुन कर दोनों तोते चौक गए।  तब दोनों ने कहा कि वाल्मीकि नाम के प्रसिद्द , बहुत बड़े ऋषि हैं।  हम लोग उन्ही के आश्रम में रहते हैं।  उन्होंने एक बड़े ही सुन्

Happy Pongal, Lohri and Makar Sankranti to all…!

Post by Sadhguru . Robert Louis Balfour Stevenson. Robert Louis Balfour Stevenson.

Happy Lohri Vekheya Sadi Yaari..!

"Lohri ka prakash, aap ki zindagi ko prakashmayi kar de Jaise Jaise lohri ki aag tej ho, vaise vaise hi hamare dukhon ka ant ho"

Stephen King quote...!

"Show me a man or a woman alone and I'll show you a saint. Give me two they will fall in love. Give me three and they will invent the charming thing we call 'society' . Give me four and they will build a pyramid. Give me five and they will make one outcast. Give me six and they will reinvent prejudice . Give me seven and in seven years they will reinvent warfare ."

कुलत्तूप्पुषा जॉय राइड ...!

अर्सों बाद 'पुनलूर' शहर में आ पहुंचा हूँ।  सोचा के, क्यों नहीं 'कुलत्तूप्पुषा 'के अय्यप्पा मंदिर दर्शन कर आऊँ।  इस विख्यात मंदिर दर्शन का अनुभव आज तक नहीं हो पाया था ।फिर मैंने बिलकुल देर नहीं लगाया।  सामने दिखीं, राज्य परिवहन  के बस में जा बैठा।  गाडी चल पड़ी।  मेरा सामनेवाला सीट खाली पड़ा था।  देखते ही देखते, मेरे गाड़ीके एम.आर.ऍफ़. पहियें , दोनों तरफ इतालियन टाइल्स लगे 'करवालूर' के स्टॉप पर जा रुकी।  बाजू के खाली सीट पर मुंड-माला धारी ( मुंडू -धोती को कहते हैं )एक स्थानीय सज्जन आकर बैठ गया।  मेरे तरफ कुछ क्षणोंके सूक्ष्मावलोकनके पश्चात, ,श्रीमानने बहुत ही आधिकारिक ढंग से मुझसे वार्तालाप आरम्भ किया। कहाँ? आया कहाँ से ? रोजी -रोटी के साधन ?इत्यादि सवालोंसे उसने, मेरी सारी  जन्मकुंडली तक जानने का प्रयास किया। पर  दम्भसे भरे उन सवालोंका, मेरे प्रत्युत्तरोंसे वह तृप्तिमंद नहीं लग रहा था।  अब कुछ क्षणों केलिए जब महाशय चुप हुआ, तो मैंने अतिविनीत भावसे उनसे उनकी नाम पूछ डाला ।  कुछ देर उसने मेरे चेहरे पर अपनी निगाहें टिकाये रखा ,फिर असमंजस भरे अंदाज़ मे

क्षमस्व.. क्षमस्व ...मम घोर अपराधम् ..!

दो :-भनिति मोरी सबगुन रहित बिस्व बिदित गुन  एक। सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें  बिमल बिबेक। कबि न होऊँ नहीं बचन प्रबीनु। सकल कला सब बिद्या हीनु।। अखर अरध अलंकृति नाना। छंद  प्रबंध अनेक बिधाना।। भाव भेद रस भेद अपारा। कबिद दोष गुन बिबिध प्रकारा।। कबिद बिबेक एक नहिं मोरें।। सत्य कहउँ लिखि कागद कोरें।। छमिहहि वो सज्जन मोरि ढिठाई। सुनिहहिं बालबचन मन लाई।। जौ बालक कह तोतरी बाता। सुनहि मुदित मन पितु अरु माता।। हसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी। जे परदूषन भूषनधारी।। खल परिहास होई हित  मोरा। काक कहहिं कलकंठ कठोरा।। भाषा भनिति भोरि मति मोरी। हसिबे जोग हसे नहिं खोरी।। गुन अवगुन जानत सब कोई। जो जेहि भाव नीक तेहि सोई।। प्रभु पद प्रीति न समुझि नीकी। तिन्हहि सुनि लागिहि फीकी।। Goswami Tulsidas: Find biography, birth history, relationship with Ramcharitmanas and Ramayana, and major works etc. ..  

Once a victim, always a victim—that's the law!

Have a Good day..!

The Leaning Tower is the freestanding bell tower of a cathedral in Pisa, Italy. Though designed to stand upright, Pisa's most famous landmark began leaning soon after construction began in 1173. In 1964, Italy's government enlisted the aid of a multinational task force to prevent the tower from toppling, but the tilt remained so severe that the tower was closed to the public in 1990. After another decade of stabilization efforts, it was reopened in 2001. What first caused it to lean?

A cynic is a man who knows the price of everything and the value of nothing.Oscar Wilde (1854-1900)

http://kurup-man.podomatic.com/entry/2015-01-04T21_16_12-08_00

New Year message ....!

Best Start.. Click Here to read More...