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Showing posts from August, 2016

देह की अंतिम शोचनीय अवस्थाएँ।

त्रिथावस्थस्य देहस्य कृमिविङ्भस्मरूपतः। को को गर्व: क्रियते ताक्षर्य क्षणविध्वंसिभिरनरै :।। गरुड़ पुराण -उत्तर -५ /२४ गरुड़जी इस शरीरकी बस , तीन प्रकार की ही अवस्थाएँ हैं -कृमि ,विष्ठा और भस्म। पृध्वीमे गाड़ देनेके  बाद इसमें कीड़े पड़ जाते हैं ,यह कृमिरूप हो जाता हैं। बाहर या जल में फेंके जाने पर मगर ,घड़ियाल ,कौए ,कुत्ते सियार ,गीध आदि जीव इसे खाकर विष्ठा कर डालते  हैं तथा आग में जला डालने पर यह  भस्म  हो जाता हैं।  ऐसे क्षणभंगुर शरीर पर मनुष्य के  गर्व का क्या अर्थ हैं ? http://epaper.deccanchronicle.com/articledetailpage.aspx?id=6656159

॥श्रीसूर्याष्टकम्॥

॥श्रीसूर्याष्टकम्॥ साम्ब उवाच – आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर । दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ॥१॥ सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् । श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥२॥ लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् । महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥३॥ त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम् । महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥४॥ बृंहितं तेजःपुञ्जं च वायुमाकाशमेव च । प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥५॥ बन्धुकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् । एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥६॥ तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजः प्रदीपनम् । महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥७॥ तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् । महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥८॥ सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम् । अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत् ॥९॥ अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने । सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्म जन्म दरिद्रता ॥१०॥ स्त्रीतैलमधुमांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने । न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति ॥११॥

Just be yourself, there is no one better

“When you are content to be simply yourself and don't compare or compete, everyone will respect you.” ― Lao Tzu , Tao Te Ching  

உள்ளம் உருகுதய்யா முருகா ....